Friday, 29 August 2014

महाराष्ट्र के पंढरपुर का मंदिर पूर्व काल में बुद्ध विहार था l


एक ऐसा सत्य है जो हर किसी को पचना मुस्किल है l पर सत्य तो सत्य ही होता है l
महाराष्ट्र के पंढरपुर का मंदिर पूर्व काल में बुद्ध विहार था और सारे जाती के संत महापुरुष वहा बुद्ध के समतावादी विचार पर प्रभावित हो कर प्रचार और प्रसार किया करते रहे, मात्र इतिहास लिखने का कार्य कलम के कसाई के पास था इसलिये संतो के समाज परिवर्तन के कार्य को उन्होंने भक्ति मार्ग बताकर बड़े पैमाने पर बद्नाम किया l बाबासाहब ने अपनी ऐतिहासिक पुस्तक अंटचेबल देश के तीन महान अछूत संत क्रमश: संत गुरु रविदास , संत नद्नार, संत चोखामेला को समरपीत कि थी, संत गाडगे महाराज के कीर्तन से वे बहुत प्रभावित थे, संत कबीर को तो वे अपना गुरु मानते थे,
महाराष्ट्र पूर्व काल से ही नागवंशीयों का गड़ रहा है सारे महाराष्ट्र में नाग लोगो ने बुद्ध धम्म के प्रचार हेतु बड़े पैमाने पर विहार, गुफाये खुद्वाये, कान्हेरी (बोरीवली, मुंबई) कि गुफा पर मुद्रित दान कर्ता के नाम और शिप्ल आज भी दिखाए देते है l जय नागवंशी !

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